
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेश में बिना मान्यता के चल रहे नर्सरी और प्ले स्कूलों को लेकर शिक्षा विभाग की लापरवाही पर जमकर नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए और साफ कहा कि कोर्ट की कार्रवाई को हल्के में न लिया जाए।
सचिव की जगह संयुक्त सचिव ने दिया हलफनामा, कोर्ट नाराज़
बुधवार को सुनवाई के दौरान जब शिक्षा सचिव की जगह संयुक्त सचिव ने शपथ पत्र दाखिल किया, तो कोर्ट भड़क उठा। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी छूट के लिए अलग से आवेदन जरूरी है और भविष्य में सचिव ही शपथ पत्र दाखिल करें।
“कोर्ट की कार्यवाही को हल्के में न लें” – चीफ जस्टिस
राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि छूट के लिए अलग आवेदन की व्यवस्था नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस सिन्हा ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि कोर्ट की कार्यवाही को किसी भी व्यक्ति द्वारा हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, चाहे वह सामान्य पक्षकार हो या राज्य सरकार का अधिकारी।
2013 से आदेश, फिर भी कार्रवाई नहीं
हाईकोर्ट ने याद दिलाया कि 5 जनवरी 2013 को ही राज्य शासन ने परिपत्र जारी कर बिना मान्यता वाले नर्सरी और प्ले स्कूलों पर कार्रवाई के निर्देश दिए थे। बावजूद इसके 15 सालों से ऐसे संस्थान खुलेआम संचालित हो रहे हैं। कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही बताते हुए अब तक की कार्रवाई पर विस्तृत कार्ययोजना पेश करने को कहा।
जानकारी जुटाने का काम शुरू
राज्य सरकार ने अपने जवाब में बताया कि 16 सितंबर 2025 को सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि 15 दिन के भीतर सभी नर्सरी और प्री-प्राइमरी स्कूलों की जानकारी अनिवार्य रूप से एकत्रित करें। साथ ही, 2 सितंबर को सात सदस्यीय समिति गठित की गई है, जो नई शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिशों के अनुरूप नए नियम और गाइडलाइन तैयार करेगी।
अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को
अब इस मामले की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी, जिसमें शिक्षा सचिव को शपथ पत्र दाखिल कर कार्रवाई का पूरा ब्यौरा देना होगा।